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शाही बदला | शाही शायरी
shahi badla

नज़्म

शाही बदला

इलियास बाबर आवान

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कसे हुए एकतारे पर हैं गेंदे के दो फूल
मेहंदी लगे हाथों पर हीरे मोती जड़े दो नक़्श

बाँसुरी के होंटों से निकले आठवीं सुर का गीत
शाम अमलतासों की सुनाए ताज़ा ताज़ा नज़्म

आईने में गोरी के उमराव-जान सा रूप
आँखों में बे-ताब तमन्ना धड़कन है बे-रब्त

दूर समय के पार से आने वाला है शहज़ादा
गर्द उड़ाती रथ से उतरा आख़िर एक जवान

अचकन पर है सजा हुआ सुरख़ाब का नीला पर
पान सुपारी चूना कत्था रेशम रेशम जिस्म

ढोल की थाप पे रक़्साँ घुँगरू और गोरी का दिल
महल-सरा की दीवारों पर है प्यास का मीठा रंग

जिस्म से निकला निकला जाए गोरी का हर अंग
शहज़ादे की साँसों में संदल के अरक़ की बास

रथ-बानों की रगों में अन जाने लम्हों का कैफ़
जिस्म और जाम की रानाई में हार का दर्द-ए-फ़ना

शहज़ादे के सीने पर हैं रक़्क़ासा के अश्क
ईरानी क़ालीन पर रक़्साँ रक़्क़ासा का ख़ून

दरवाज़े के बाहर लटका जंग में हार का दाग़
शहज़ादे के होंटों पर है फ़ातेह की मुस्कान