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शाह-राह | शाही शायरी
shah-rah

नज़्म

शाह-राह

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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एक अफ़्सुर्दा शाह-राह है दराज़
दूर उफ़ुक़ पर नज़र जमाए हुए

सर्द मिट्टी पे अपने सीने के
सुर्मगीं हुस्न को बिछाए हुए

जिस तरह कोई ग़म-ज़दा औरत
अपने वीराँ-कदे में मह्व-ए-ख़याल

वस्ल-ए-महबूब के तसव्वुर में
मू-ब-मू चूर उज़्व उज़्व निढाल