तोड़ के घुंघरू
छोड़ के महफ़िल
चुप का बरन क्यूँ पहना है
पेट पे खुजली
मुँह पर दाने
वाह तेरा क्या कहना है
क्यूँ शरमाए
क्यूँ घबराए
ये दुख हँस कर सहना है
प्यारी बेटा
यही मरज़ तो
इस पेशे का गहना है
नज़्म
सत्तरहवाँ सिंगार
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
क़तील शिफ़ाई
तोड़ के घुंघरू
छोड़ के महफ़िल
चुप का बरन क्यूँ पहना है
पेट पे खुजली
मुँह पर दाने
वाह तेरा क्या कहना है
क्यूँ शरमाए
क्यूँ घबराए
ये दुख हँस कर सहना है
प्यारी बेटा
यही मरज़ तो
इस पेशे का गहना है