क्या ख़ूब हो गर इस दुनिया से
सरहद का नाम ख़त्म हो जाए
सारे देस.... सब के देस हों
रूह को जिस्म
और जिस्म को रूह से मिलने के लिए
किसी वीज़े की ज़रूरत न हो
जो चाहे, जब चाहे, जहाँ चाहे
जिस से मिले....
जो चाहे, जब चाहे, जहाँ चाहे
चला जाए....
कोई पाबंदी न हो.....
काग़ज़ पे लगाई हुई लकीरों से
दुनिया के इस नक़्शे पर
नफ़रत बाँटने वालों के
ख़्वाब अधूरे रह जाएँ....
क्या ख़ूब हो गर इस दुनिया से
सरहद का नाम ख़त्म हो जाए
नज़्म
सरहद
नदीम गुल्लानी