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सरगोशी | शाही शायरी
sargoshi

नज़्म

सरगोशी

अहमद राही

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हर एक साँस में सरगोशियाँ हैं नौहों की
किसी भी लब पे कोई जाँ-फ़ज़ा तराना नहीं

सिमट सिमट गई अंगड़ाइयों की पहनाई
हिकायत-ए-ग़म-ए-दौराँ कोई फ़साना नहीं

जो ज़ुल्म हम पे हुआ है अब उस का ज़िक्र ही क्या
यहाँ पे हम ही सितम-ख़ुर्दा-ए-ज़माना नहीं

शिकस्त-ए-साज़-ए-मोहब्बत से सोज़िश-ए-ग़म से
हर एक आरिज़-ए-गुलगूँ से शबनम-आलूदा

मआल-ए-अहद-ए-वफ़ा है फ़िराक़-ए-दीदा-ओ-दिल
नक़ीब-ए-दौर-ए-गुज़िश्ता है दौर-ए-मौजूदा