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सराबों का सफ़र | शाही शायरी
sarabon ka safar

नज़्म

सराबों का सफ़र

शमीम क़ासमी

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दश्त-ए-इम्कान में जारी है
सराबों का सफ़र

एक सहरा-ए-जुनूँ
हद्द-ए-नज़र है हाइल

शाख़-ए-ज़ैतून पे
आवाज़ का पंछी घायल

दौर-ए-पाज़ेब की छम छम है
चमकती शय है

रह-गुज़र कोई नहीं
धुँद के मंज़र के सिवा

इक तिरी यादों के सिवा
हर तरफ़ रेत के उठ्ठे हैं बगूले

हातिम
नक़्श-ए-पा कोई नहीं

ख़ून के क़तरों के सो
इक सदी बीत गई

एक ज़माना गुज़रा
अब यक़ीं कैसे हो

होंट तिश्ना हैं मिरे
ख़ुश्क गिला है अब भी

हर तरफ़ कर्ब-ओ-बला है अब भी
दश्त-ए-इम्कान में जारी है

सराबों का सफ़र