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सपेरा | शाही शायरी
sapera

नज़्म

सपेरा

मुनीर नियाज़ी

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मैं हूँ एक अजीब सपेरा
नाग पालना काम है मेरा

पीले पीले काले काले
रंग-बिरंगे धब्बों वाले

शालों सी फ़नकारों वाले
ज़हरीली महकारों वाले

उन की आँखें तेज़ नशीली
गहरी झीलों जैसी नीली

नए लहू से लाल ज़मानें
जैसे मौत की रंगीं तानें

महमिल के रुमालों जैसे
सुर्ख़ गुलाबी गालों जैसे

मुझ को तकते रहते हैं ये
मुझ को डसते रहते हैं ये

मुझ पर हँसते रहते हैं ये