EN اردو
समुंदर की जानिब से आती हवा में | शाही शायरी
samundar ki jaanib se aati hawa mein

नज़्म

समुंदर की जानिब से आती हवा में

समीना राजा

;

कभी नीलगूँ आसमाँ के तले
सब्ज़ साहिल पे मिलने का वा'दा हुआ था

समुंदर किसी ख़्वाब सा ख़ुशनुमा था
समुंदर के पहलू में

शहर-ए-दिल-अफ़रोज़ का हमहमा था
ये शहर आज अश्कों में डूबा हुआ है

यहाँ से वहाँ तक
हर इक रहगुज़र पर

इक आसेब का सामना है
निगाहों के आगे धुआँ है

समुंदर कहाँ है
समुंदर के साहिल पे मिलने का वा'दा हुआ था

कोई आज भी उस बुलावे की उम्मीद में
ख़ुद से रूठा हुआ है

कोई बे-क़रारी के साहिल पे
आँखें बिछाए खड़ा है

कोई रंज ओढ़े हुए सो रहा है
कोई ख़ौफ़ ताने हुए जागता है

कोई बे-कराँ प्यास में डूबता है
कोई आस के पानियों को

अबस झागता है
अजब उस ज़मीं की फ़ज़ा है

अजब आज रंग-ए-फ़लक है
समुंदर की जानिब से आती हवा में

लहू की महक है