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समुंदर | शाही शायरी
samundar

नज़्म

समुंदर

फ़रहत एहसास

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लफ़्ज़ बहुत से
जग-मग जग-मग करते तारे

चाँद नहीं बनने पाते हैं
रात गले में फँस जाती है

जज़्बे कितने
बौराई अल्हड़ ख़ुशबुएँ

फूल नहीं बनने पाती हैं
ज़ात गले में फँस जाती है

लेकिन अक्सर
तेरी यादें

तेरा चेहरा बन कर आईं
जग-मग जग-मग करते तारे

बौराई अल्हड़ ख़ुशबुएँ
चाँद जले रहते हैं शब भर

फूल खिले रहते हैं शब भर
रात समुंदर बन जाती है

ज़ात समुंदर बन जाती है