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सलीक़ा | शाही शायरी
saliqa

नज़्म

सलीक़ा

निदा फ़ाज़ली

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देवता है कोई हम में
न फ़रिश्ता कोई

छू के मत देखना
हर रंग उतर जाता है

मिलने-जुलने का सलीक़ा है ज़रूरी वर्ना
आदमी चंद मुलाक़ातों में मर जाता है