यूँ मिरी क़ब्र बना जैसे शबिस्तान-ए-नशात
मौत का जश्न मना
फ़र्श-ए-शबनम पे बिछा लाल गुलाबों की बिसात
ख़ाली ताक़ों पे सजा ज़र्द शराबों के ज़ुरूफ़
वा दरीचों पे ब-सद नाज़-ओ-अदा टाँकने आ
भीनी ख़ुश्बू के धनक-रंग हरीरी पर्दे
अभी कुछ देर ठहर बानो अभी दफ़ न बजा
न उठा सोई हुई कलियों के घूंगट न उठा
मौत अगर जश्न-ए-मुलाक़ात है आ जश्न मना
इक सितारे को जनम दे
इक सितारा कि जो उस मौत की शब रक़्स करे
मौत और रक़्स
नींद में भीगी हुई पलकों पे बेदार जलाल
दूर इक जंग-ज़दा दश्त में तस्वीर-ए-जमाल
सीना-ए-ख़ाक पे कोहों का तराशीदा कमाल
आ मिरी बाँहों में लहरा के चली आ बानो
रौशनी बुझ गई जलने लगे बदनों के हिसार
दूर काफ़ूर की ठंडक में खड़े हैं अश्जार
ख़ुश्क है मेरा गला ख़ाली है पानी का गिलास
अपने अश्कों से मिरी प्यास बुझा
आ मिरी क़ब्र बना
नज़्म
सकरात मौत में पानी का ख़्वाब
मसऊद मुनव्वर