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सैराबी | शाही शायरी
sairabi

नज़्म

सैराबी

राशिद आज़र

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बे-मेहरी-ए-दुनिया की कड़ी धूप में अक्सर
देखा है कि झुलसा दिया जब ग़म की तपिश ने

मुरझा दिया जब दर्द की शिद्दत ने बदन को
और होंट दम-ए-बाज़-पसीं से लरज़ उट्ठे

छाया है घटा-टोप तेरे प्यार का बादल
बरसी है धुआँ-धार तिरे लुत्फ़ की बारिश

तू ने मुझे इस तरह भी सैराब किया है