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सहर | शाही शायरी
sahar

नज़्म

सहर

अली साहिल

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वो किसी भी हाल में
अपने होंटों पर सुर्ख़ी लगाना नहीं भूलती

और मैं कंघी करना
आज फैली हुई सुर्ख़ी

और बिखरे हुए बाल
अजीब ही मंज़र पेश कर रहे हैं

और पस-मंज़र में अज़ान हो रही है