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सफ़ेद छड़ियाँ | शाही शायरी
safed chhaDiyan

नज़्म

सफ़ेद छड़ियाँ

अहमद फ़राज़

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जनम का अंधा
जो सोच और सच के रास्तों पर

कभी कभी कोई ख़्वाब देखे
तो ख़्वाब में भी

अज़ाब देखे
ये शाहराह-ए-हयात जिस पर

हज़ार-हा क़ाफ़िले रवाँ हैं
सभी की आँखें

हर एक का दिल
सभी के रस्ते

सभी की मंज़िल
इसी हुजूम-ए-कशाँ-कशाँ में

तमाम चेहरों की दास्ताँ में
न नाम मेरा

न ज़ात मेरी
मिरा क़बीला

सफ़ेद छड़ियाँ