EN اردو
सफ़र पर सफ़र | शाही शायरी
safar par safar

नज़्म

सफ़र पर सफ़र

आदिल हयात

;

बयाबान-ओ-सहरा को मैं ज़ेर करता
चला जा रहा हूँ

मगर ये यक़ीं है
कि तारीक आँखों से पर्दा हटेगा

अँधेरे उजालों में तब्दील होंगे
नज़र मुझ को आएगा रौशन सितारा

कि चाहत में जिस की
अज़ल से ज़मीं पर

सफ़र पर सफ़र तय किए जा रहा हूँ