EN اردو
सफ़र | शाही शायरी
safar

नज़्म

सफ़र

फ़ज़्ल ताबिश

;

रात जब हर चीज़ को चादर उढ़ा दे
ढाँप ले काले परों में

आग लपटों सी ज़बानें
अज़दहे जब अपने अंदर बंद कर लें

तब उसी काले समय में
तुम घरों की क़ब्र से बाहर निकलना

और बस्ती के किनारे
ख़्वाब में ख़ामोश बहते आदमी से

आ के मुझ को ढूँढना
मैं वहीं तुम सब से कुछ आगे मिलूँगा

और अँधेरा सा तुम्हारे आगे आगे मैं चलूँगा
रौशनी ले कर चलूँगा तो मुझे

तुम से भी पहले और कोई ढूँढ लेगा