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सफ़र बे-सम्त | शाही शायरी
safar be-samt

नज़्म

सफ़र बे-सम्त

आदिल हयात

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ज़मीं से आसमाँ के दरमियाँ
बे-सम्त राहों में

मिरे शहपर
सदा पर्वाज़ करते हैं

कहाँ पर्वाज़ पर कोई
मिरी क़दग़न लगाता है

और उन आँखों में मंज़िल ही
मिरी कब मुस्कुराती है