ज़मीं से आसमाँ के दरमियाँ
बे-सम्त राहों में
मिरे शहपर
सदा पर्वाज़ करते हैं
कहाँ पर्वाज़ पर कोई
मिरी क़दग़न लगाता है
और उन आँखों में मंज़िल ही
मिरी कब मुस्कुराती है
नज़्म
सफ़र बे-सम्त
आदिल हयात
नज़्म
आदिल हयात
ज़मीं से आसमाँ के दरमियाँ
बे-सम्त राहों में
मिरे शहपर
सदा पर्वाज़ करते हैं
कहाँ पर्वाज़ पर कोई
मिरी क़दग़न लगाता है
और उन आँखों में मंज़िल ही
मिरी कब मुस्कुराती है