ये दूर दूर मुरादों के रेतीले टीले
सरक सरक के जो दामन बदलते रहते हैं
ये मुर्दा ऊँट जो सहरा के ज़र्द रंगों में
किसी ने दश्त-ए-तलब में सजा के रक्खे हैं
कि जो भी भेस बदल कर इधर रवाना हो
पलट ही जाए वो ले कर फटी फटी आँखें
ये किस की वादी है ये ऊँट किस के हैं
ये कौन ज़र्द-निगारिश का इतना शाएक़ है
ये कौन क़ैस है किस दश्त के सराब में है
ये किस का ख़्वाब है किस हुस्न के अज़ाब में है
जुनूँ में डूब के दिल ने पुकारा नाम अपना
झटक के सर को तमन्ना ने चीख़ दोहराई
ख़याल ख़्वाब के दामन में चौंक चौंक उठा
ये मेरा नाम था दिल का या मेरी लैला का
मिरी तमन्ना थी दिल की या मेरी लैला की
ये चीख़ सर की झटक और ख़्वाब किस के थे
पलट ही जाओ न ले कर फटी फटी आँखें
नज़्म
सदा ब-सहरा
ग़ालिब अहमद