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सब्ज़ से सफ़ेद में आने का ग़म | शाही शायरी
sabz se safed mein aane ka gham

नज़्म

सब्ज़ से सफ़ेद में आने का ग़म

ख़ुर्शीद रिज़वी

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नज़र उठाऊँ
तो संग-ए-मरमर की कोर बे-हिस

सफ़ेद आँखें
नज़र झुकाऊँ तो शेर-ए-क़ालीन घूरता है

मिरे लिए इस महल में आसूदगी नहीं है
कोई मुझे इन सफ़ेद पत्थर के गुम्बदों से रिहा किराए

मैं इक सदा हूँ
मगर यहाँ गुंग हो गया हूँ

मिरे लिए तो
उन्हीं दरख़्तों के सब्ज़ गुम्बद में शांति थी

जहाँ मिरी बात गूँजती थी