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jinhen main DhunDhta tha aasmanon mein zaminon mein wo nikle mere zulmat-KHana-e-dil ke makinon mein
नज़्म
गुलज़ार
आदमी बुलबुला है पानी का और पानी की बहती सतह पर टूटता भी है, डूबता भी है फिर उभरता है फिर से बहता है न समुंदर निगल सका इस को न तवारीख़ तोड़ पाई है वक़्त की मौज पर सदा बहता आदमी बुलबुला है पानी का