सुलैमाँ सर-ब-ज़ानू और सबा वीराँ
सबा वीराँ, सबा आसेब का मस्कन
सबा आलाम का अम्बार-ए-बे-पायाँ!
गयाह ओ सब्ज़ा ओ गुल से जहाँ ख़ाली
हवाएँ तिश्ना-ए-बाराँ,
तुयूर इस दश्त के मिनक़ार-ए-ज़ेर-ए-पर
तू सुर्मा वर गुलू इंसाँ
सुलैमाँ सर-ब-ज़ानू और सबा वीराँ!
सुलैमाँ सर-ब-ज़ानू तुर्श-रू ग़म-गीं, परेशाँ-मू
जहाँ-गिरी, जहाँ-बानी फ़क़त तर्रार-ए-आहू
मोहब्बत शोला-ए-पराँ हवस बू-ए-गुल बे-बू
ज़-राज़-ए-दहर कम-तर-गो!
सबा वीराँ के अब तक इस ज़मीं पर हैं
किसी अय्यार के ग़ारत-गरों के नक़्श-ए-पा बाक़ी
सबा बाक़ी, न महरू-ए-सबा बाक़ी!
सुलैमाँ सर-ब-ज़ानू
अब कहाँ से क़ासिद-ए-फ़र्ख़ंदा-पय आए?
कहाँ से, किस सुबू से कास-ए-पीरी में मय आए?
नज़्म
सबा वीराँ
नून मीम राशिद