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सबा के हाथ पीले हो गए | शाही शायरी
saba ke hath pile ho gae

नज़्म

सबा के हाथ पीले हो गए

बलराज कोमल

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सबा के हाथ पीले हो गए
मैं साअत-ए-सरशार में

लाखों दुआएँ
ख़ूब-सूरत आरज़ुएँ

पेश करता हूँ
सबा मम्नून है

लेकिन ज़बाँ है
कुछ नहीं कहती

सबा अब रोज़ ओ शब
दीवार-ओ-दर तन पर सजाती है

अब आँचल छत का सर पर ओढ़ती है
लम्स-ए-फ़र्श-ए-मरमरीं से

पाँव की तज़ईन करती है
वो कोहसारों शगुफ़्ता वादियों झरनों

चमकते नील-गूँ आकाश के
नग़्मे नहीं गाती

सबा अब लाला-ओ-गुल की तरफ़ शायद नहीं आती
सबा शबनम-अदा तस्वीर-ए-पा-बस्ता

दर-ए-रौज़न में आवेज़ां
हसीं नाज़ुक बदन

रौशन मुनव्वर साहिलों पर अब नहीं बहती
सबा लब खोलती है मुस्कुराती है

सबा सरगोशियों में
अब किसी से कुछ नहीं कहती