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सब दरवाज़े खोल दे | शाही शायरी
sab darwaze khol de

नज़्म

सब दरवाज़े खोल दे

कुमार पाशी

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मैं ने अपने घर की सारी खिड़कियाँ सब दरवाज़े
खोल दिए हैं

सुर्ख़, सुनहरी संग ऊषा भी आए
कच्चे दूध से मुँह धो कर चंदा भी आए

तेज़ नुकीली धूप भी झाँके
नर्म, सुहानी हवा भी आए

ताज़ा खिले हुए फूलों की
मन-मोहन ख़ुश्बू भी आए

देस देस की ख़ाक छानता हुआ कोई साधू भी आए
और कभी भूले से

शायद
तू भी आए

युगों युगों से
मैं ने

अपने दिल की सारी खिड़कियाँ सब दरवाज़े
खोल रखे हैं