EN اردو
सायों के साए में | शाही शायरी
sayon ke sae mein

नज़्म

सायों के साए में

शीन काफ़ निज़ाम

;

मुंतज़िर
मुतशव्वश ओ मुंतशिर

कितने मकानों की क़तारें
उस

खंडर की ओर
जो शायद कभी माबद-कदा हैं

उन का
जिन के गुम होने से हैं

गुम-सुम
सभी गलियाँ और

गुज़रगाहों पे मंडलाता हुआ
आसेबी साया

मोड़ पर
रुकती सिसकती

अजनबी सायों से
सहमी

कोई परछाईं पलटती
भागते क़दमों की आहट

डूब जाती
आबजू के

ठीक
बीचों-बीच