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सारी उम्र गँवा दी हम ने | शाही शायरी
sari umr ganwa di humne

नज़्म

सारी उम्र गँवा दी हम ने

वज़ीर आग़ा

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सारी उम्र गँवा दी हम ने
पर इतनी सी बात भी हम न जान सके

खिड़की का पट खुलते ही जो
लश लश करता

एक चमकता मंज़र हम को दिखता है
क्या वो मंज़र

खिड़की की चौखट से बाहर
सब्ज़ पहाड़ी के क़दमों में

इक शफ़्फ़ाफ़ नदी से चिमटे
पत्थर पर चुप चाप खड़े

इक पैकर का गुम-सुम मंज़र है
जिस को खिड़की के खुलने न खुलने से

कुछ ग़रज़ नहीं है
या हम

खिड़की के अंदर का मंज़र देख रहे हैं
सारी उम्र गँवा दी हम ने