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'सादेम' | शाही शायरी
sadem

नज़्म

'सादेम'

अब्दुल अहद साज़

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ज़िंदगी 'सादिया' के साथ खिले
दम-ब-दम यम-ब-यम हयात खिले

महव हो जाए सब गुमान-ए-नफ़ी
उस के चेहरे पे जब सबात खिले

लम्स से उस के नन्हे हाथों के
गुँचा-ए-इन्किशाफ़-ए-ज़ात खिले

सीप होंटों में मोतियों की क़तार
जब खिले गौहर-ए-सिफ़ात खिले

मुस्कुराए तो रौ में आए हयात
खिलखिला दे तो काएनात खिले

उस की शफ़्फ़ाफ़ नींद मीठे ख़्वाब
घर में तारों भरी सी रात खिले

सुब्ह जब आँख में किरन जागे
दूर तक सब्ज़ा-ए-हयात खिले

वो जवाँ हो तो शाएरी निखरे
इक ग़ज़ल 'सादिया' के साथ खिले