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रूह-ए-अस्र-ए-रवाँ | शाही शायरी
ruh-e-asr-e-rawan

नज़्म

रूह-ए-अस्र-ए-रवाँ

फर्रुख यार

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वो अलम गिर गए जिन के साए तले
इश्क़ की अव्वलीं सत्र लिखी गई

फूल भेजे गए
दुश्मनों के लिए

अब मिलो भी कि ऐ रूह-ए-अस्र-ए-रवाँ
रंग जलने लगे

रूप ढलने लगे
दूसरे पहर में तेरहवीं ज़र्ब पर

कट गए दिन के राजे कड़ी धूप में
शाख़-ता-शाख़ मुरझा गईं रात की रानियाँ

अब मिलो भी कि ऐ रूह-ए-अस्र-ए-रवाँ
आँसुओं में सजा अक्स उड़ने को है

बर्फ़ होने को हैं अपनी हैरानियाँ
रूह-ए-अस्र-ए-रवाँ!!

रूह-ए-अस्र-ए-रवाँ!!