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रुत | शाही शायरी
rut

नज़्म

रुत

मख़दूम मुहिउद्दीन

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दिल का सामान उठाओ
जान को नीलाम करो

और चलो
दर्द का चाँद सर-ए-शाम निकल आएगा

क्या मुदावा है
चलो दर्द पियो

चाँद को पैमाना बनाओ
रुत की आँखों से टपकने लगे काले आँसू

रुत से कह दो
कि वो फिर आए

चलो
इस गुल-अंदाम की चाहत में भी क्या क्या न हुआ

दर्द पैदा हुआ दरमाँ कोई पैदा न हुआ