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रिश्ते | शाही शायरी
rishte

नज़्म

रिश्ते

मोहसिन आफ़ताब केलापुरी

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सूखे पत्तों की तरह टूट के गिर जाते हैं रिश्ते भी अगर इन को मोहब्बत की तर-ओ-ताज़ा हवा पानी जो एहसास की मिट्टी में फ़राहम न करें
हाँ मगर

भूले से जब टूट के गिर जाएँ कभी कुछ रिश्ते
तो फिर अच्छा है के उन रिश्तो को यकजा कर के

वक़्त के जलते सुलगते हुए चूल्हे के हवाले कर दें