बे-इरादा चलेंगे तो ला-हासिली के मसाइब से बच जाएँगे
तुम कहोगे कोई फूल रख दूसरे हात पर
दिल ही दिल में मैं रो दूँगा इस बात पर
मैं कहूँगा
नहीं कुछ न कह पाऊँगा
क़हक़हा मार कर बस हँसूँगा तुम्हें भी हँसी आएगी
बे-इरादा यूँही
बे-इरादा हँसेंगे यूँही देर तक
फिर ख़याल आएगा: तुम ने इक बात मुझ से कही थी
बताओ: वो क्या बात थी
तुम कहोगे हटाओ भुला दो उसे
आओ चल दें यूँही
बे-इरादा कहीं
भूल जाएँ कि उस के गुनाहगार हैं
उस के क़ातिल हैं हम
भूल जाएँ कि अपनी सज़ा मौत है
नज़्म
रिजाइयत की हिमायत में
कुमार पाशी