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रौज़न-ए-दीवार-ए-शब | शाही शायरी
rauzan-e-diwar-e-shab

नज़्म

रौज़न-ए-दीवार-ए-शब

बलराज कोमल

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गर्मी-ए-ख़ुर्शेद का
एक नक़्श-ए-मुज़्तरिब

रौज़न-ए-दीवार-ए-शब
ख़ुश-अदा पुर-कार है

नूर से सरशार है
सैल-ए-मौज-ए-शहर में

वो उतरने को है अब
ख़ैर-मक़्दम के लिए

जागते हैं चश्म-ओ-लब
मेरी ख़ातिर शहर में

वो फ़रोज़ाँ जिस्म-ओ-जाँ
वो दरख़्शाँ पैरहन

वो सुनहरा बाँकपन
शो'ला-ए-तनवीर है

ख़ून में तहलील है
सुब्ह की तस्वीर है

उस का रू-ए-शादमाँ
हश्र के हंगाम तक

मेरे दिल में जावेदाँ