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रौशनी में खोई गई रौशनी | शाही शायरी
raushni mein khoi gai raushni

नज़्म

रौशनी में खोई गई रौशनी

हुसैन आबिद

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मैं ने उसे नहीं देखा
जब तक उस ने

सारे चराग़ गुल नहीं कर दिए
अँधेरे में मुझे

चारों तरफ़ वही नज़र आई
डरावने जंगल में

रस्ता बनाते जुगनुओं की तरह
हो सकता है

मैं हादसाती तौर पर
रौशनी में आ जाऊँ

लेकिन
अब वो जान चुकी है

चराग़ जलते ही
मुझे जुगनू नज़र आना बंद हो जाते हैं