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रक़्स | शाही शायरी
raqs

नज़्म

रक़्स

मख़दूम मुहिउद्दीन

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वो रूप रंग राग का पयाम ले के आ गया
वो काम-देव की कमान जाम ले के आ गया

वो चाँदनी की नर्म नर्म आँच में तपी हुई
समुंदरों के झाग से बनी हुई जवानियाँ

हरी हरी रविश पे हम-क़दम भी हम-कलाम भी
बदन महक महक के चल

कमर लचक लचक के चल
क़दम बहक बहक के चल

वो रूप रंग राग का पयाम ले के आ गया
वो काम-देव की कमान जाम ले के आ गया

इलाही ये बिसात-ए-रक़्स और भी बसीत हो
सदा-ए-तेशा कामराँ हो कोहकन की जीत हो