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रंग-ए-गुफ़्तुगू | शाही शायरी
rang-e-guftugu

नज़्म

रंग-ए-गुफ़्तुगू

यूसुफ़ ज़फ़र

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नाज़ था ख़ूबी-ए-गुफ़्तार पे मुझ को लेकिन
आज फूलों ने पुकारा मुझे रंग-ओ-बू से

तू नज़र आया कि पत्थर भी ज़बाँ रखते हैं
हर मकाँ मकीनों की है तफ़्सीर-ए-नज़र

शौकत-ए-शाह का उन्वान बना उस का महल
संग-ए-दीवार ने दी उस के तहफ़्फ़ुज़ को ज़बाँ

झोंपड़ी ग़ुर्बत-ए-मज़दूर की है मर्सियाँ-ख़्वाँ
चीथड़े चीख़ते हैं जेब की नादारी पर

आबला-पाई से आती है सफ़र की ख़ुश्बू
गर्द-ए-मल्बूस से मिलती है मुसाफ़िर की ख़बर

किस की आवाज़ सुनूँ किस की सदा पर बोलूँ