नाज़ था ख़ूबी-ए-गुफ़्तार पे मुझ को लेकिन 
आज फूलों ने पुकारा मुझे रंग-ओ-बू से 
तू नज़र आया कि पत्थर भी ज़बाँ रखते हैं 
हर मकाँ मकीनों की है तफ़्सीर-ए-नज़र 
शौकत-ए-शाह का उन्वान बना उस का महल 
संग-ए-दीवार ने दी उस के तहफ़्फ़ुज़ को ज़बाँ 
झोंपड़ी ग़ुर्बत-ए-मज़दूर की है मर्सियाँ-ख़्वाँ 
चीथड़े चीख़ते हैं जेब की नादारी पर 
आबला-पाई से आती है सफ़र की ख़ुश्बू 
गर्द-ए-मल्बूस से मिलती है मुसाफ़िर की ख़बर 
किस की आवाज़ सुनूँ किस की सदा पर बोलूँ
        नज़्म
रंग-ए-गुफ़्तुगू
यूसुफ़ ज़फ़र

