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रंग-ए-बहार | शाही शायरी
rang-e-bahaar

नज़्म

रंग-ए-बहार

क़ैसर अब्बास

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काँपते हाथ मिरे
एक दुआ को उट्ठे

ऐ ख़ुदा
आज मिरे ख़्वाब की

ता'बीर मिले या न मिले
मो'जिज़े हों कि न हों

फिर बशारत नई सुब्हों की
मिले या न मिले

ऐ ख़ुदा
आज कोई अच्छी ख़बर

शहर-आशोब से
इस शहर-ए-बुताँ तक

पहुँचे