EN اردو
रफ़्तगाँ | शाही शायरी
raftagan

नज़्म

रफ़्तगाँ

मुनीबुर्रहमान

;

हैं याद-ए-हा-ए-रफ़्ता के दीवार-ओ-दर कहाँ
वो संग-ए-आस्ताँ कहाँ वो रहगुज़र कहाँ

दश्त-ए-वफ़ा में दावत-ए-दीवानगी किसे
मजबूर ग़म को रुख़स्त-ए-आह-ए-सहर कहाँ

उन रास्तों में ढूँडते फिरते हैं नक़्श-ए-पा
ऐ हमरहान-ए-ताज़ा वो अहल-ए-सफ़र कहाँ

है कौन जिस को नज़्र करें आँसुओं के फूल
ले जाएँ आज आबरू-ए-चश्म-ए-तर कहाँ

हर अजनबी से पूछ रहे हैं निशान-ए-राह
नौ-वारिदान-ए-शहर को घर की ख़बर कहाँ

दर दर की ख़ाक छानते ये दिन तो कट गया
अब फ़िक्र-ए-शब है देखिए होगी बसर कहाँ