EN اردو
रद्द-ए-अमल | शाही शायरी
radd-e-amal

नज़्म

रद्द-ए-अमल

ज़ुबैर रिज़वी

;

मुझे ये यक़ीं था
कि जब मैं सुनाऊँगा

इस शहर को
शब के पहलू में किस तरह पाया है मैं ने

तो सब लोग मेरे क़रीब आ के
हैरत से मुझ को तकेंगे

भरी पियालियाँ चाय की
हाथ से छूट कर गिर पड़ेंगी

निगाहों में
गहरी उदासी के बादल उमडने लगेंगे

नए मुआशरे की
बद-आमालियों और बद-चलनियों पर

बड़े सख़्त लहजे में तन्क़ीद होगी
मगर कोई प्याली न हाथों से छूटी

न गहरी उदासी निगाहों में उमडी
नए मुआशरे की

बद-आमालियों और बद-चलनियों पर
किसी ने न संग-ए-मलामत ही फेंका

सुना सिर्फ़ इतना
अभी तुम को इस शहर के जानने में कई दिन लगेंगे