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रावण ज़िंदाबाद | शाही शायरी
rawan zindabaad

नज़्म

रावण ज़िंदाबाद

ख़ालिद कर्रार

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जला रहा हूँ
कई युगों से

मैं उस को ख़ुद ही जला रहा हूँ
जला रहा हूँ कि उस के जलने में

जीत मेरी है मात उस की
जला रहा हूँ बड़े से पिंडाल में सजा कर

जला रहा हूँ
मिटा रहा हूँ

मगर वो
मिरे ही मन की अंधेर नगरी में जी रहा हूँ

वो मेरी लंका में अपने पाँव पसारे बैठा
कई युगों से

मुझे मुसलसल चिड़ा रहा है