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रात और दिन के दरमियाँ कोई | शाही शायरी
raat aur din ke darmiyan koi

नज़्म

रात और दिन के दरमियाँ कोई

आदिल मंसूरी

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रात और दिन के दरमियाँ कोई
रीढ़ की हड्डी तोड़ कर निकला

चाँद सूरज सितारे सय्यारे
बाँध कर सब को अपने बालों में

मेरे अंदर उतर गया वापस