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रास्ते | शाही शायरी
raste

नज़्म

रास्ते

ज़ेहरा निगाह

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अब तलक उन निगाहों में महफ़ूज़ हैं
सीधे-सादे वो वीरान से रास्ते

अपने हमराज़ अपने शनासा
अपने दुख अपने सुख दोनों पहचानते

ऊँघते जागते ठहरते भागते
भीगे भीगे वो हैरान से रास्ते

देखते देखते एक पुल बन गया
और समुंदर का पानी सिमट कर समुंदर से फिर मिल गया

धूप से तप के मिट्टी का गीला बदन जाग उठा तन गया
घर हुमकने लगे लोग बसने लगे

रंग लौ दे उठे फूल हँसने लगे
अब कहीं कोई तन्हा सड़क कोई वीरान कोना उभरता नहीं

कोई दिलदार साया बुलाता नहीं कोई ग़म-ख़्वार रस्ता निकलता नहीं