EN اردو
राहगुज़र | शाही शायरी
rahguzar

नज़्म

राहगुज़र

शमीम करहानी

;

(थरथराता हुआ एहसास के ग़म-ख़ाने में
नर्गिसी आँखों का मासूम सा शिकवा दिन रात

ज़ीस्त के साथ रहा करता है साए की तरह
चंद उतरे हुए चेहरों का तक़ाज़ा दिन रात)

शाम होती है तो रोती हैं नंदासी आँखें
लोरियाँ रूठ गईं प्यार भरी बात गई

सुब्ह आती है तो कहती हैं निगाहें उठ कर
किस लिए दिन का उजाला हुआ क्यूँ रात गई)

(रौशनी लाए जो कोई तो कहाँ से लाए
शाम-ए-ग़म भूल गई सुब्ह-ए-ख़ुशी का रस्ता

खोई खोई सी निगाहों में चमक है फिर भी
अब भी तकता है कोई जैसे किसी का रस्ता

पाँव काँटों में हैं तारों पे नज़र है ऐ दोस्त)