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क़ुर्ब-ए-क़यामत | शाही शायरी
qurb-e-qayamat

नज़्म

क़ुर्ब-ए-क़यामत

ख़ुर्शीद रिज़वी

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ये चिड़िया जो पंखे से टकरा गई है
उसे तो फ़क़त आशियाना बनाने की धुन थी

उसे वक़्त की पीठ से लाख दो लाख सालों के गिरने का अंदाज़ा कब था
उसे क्या ख़बर थी

वो सरसब्ज़ अय्याम मुरझा चुके हैं
वो इंसाँ से पहले के शादाब जंगल

जहाँ घोंसलों और उड़ानों के मा-बैन
धातों की पर्रां फ़सलें नहीं थीं

उक़ाबों के पर आज भी सरसराएँ
तो मासूम चिड़ियों के दिल सहम जाएँ

मगर उन को मालूम क्या है
कि क़ुर्ब-ए-क़यामत के आसार पैदा हैं

बे-जान लोहे को पर लग गए हैं