सुना है रेशम के कीड़ों ने
पत्तों की हरियाली चाटी
शबनम के क़तरों की दमक भी
फूलों के रंगों को चुराया
चाँद की किरनों के लच्छों से रेशम काता
और इक थान किया तय्यार जिस को पा लेने की ख़ातिर
शीरीं ने फ़रहाद को बेचा
हीर ने हीरे
लैला ने ज़ुल्फ़ों की सियाही
लेकिन सौदा हो न सका
अब फूलों में रंग नहीं है
शबनम पानी के क़तरों में डूब गई है
पत्ते पत्ते हैं लेकिन बे-आब-ओ-नुमू
चाँद है लेकिन भीक का पियाला किरनों से महरूम
सुना है रेशम के कीड़े ये सोचते हैं
उन शहरों से कूच करें
जिन में उन के रेशम का गाहक ही नहीं है
सुना है शीरीं हीर और लैला अपने नामों को बदलेंगे
शायद यूँही उन के आशिक़ फिर उन को पहचान सकें
नज़्म
क़द्र-ओ-क़ीमत
यूसुफ़ ज़फ़र