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क़द्र-ए-मुश्तरक | शाही शायरी
qadr-e-mushtarak

नज़्म

क़द्र-ए-मुश्तरक

हमीदा शाहीन

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ख़ुदा और मजाज़ी ख़ुदा में कोई क़द्र ऐसी भी है
जिस को हम मुश्तरक कह सकें

एक की ज़ात से ज़ुल्म मुमकिन नहीं
दूसरे को ख़ुदाई का इतना नशा है कि उस के लिए

क़हर आसान इंसाफ़ दुश्वार है