क़ाफ़िए आते गए और मैं उन्हें पैहम पिरोता ही गया अफ़्कार में
इस लिए बरजस्तगी का रंग और आहंग है मेरे हसीन ओ दिल-नशीं अशआर में
आ गई उस्लूब की शाइस्तगी
और फ़न की आगही
और वक़ार ओ वज़्न पैदा हो गया किरदार में
नज़्म
क़ाफ़िए आते गए
कृष्ण मोहन
नज़्म
कृष्ण मोहन
क़ाफ़िए आते गए और मैं उन्हें पैहम पिरोता ही गया अफ़्कार में
इस लिए बरजस्तगी का रंग और आहंग है मेरे हसीन ओ दिल-नशीं अशआर में
आ गई उस्लूब की शाइस्तगी
और फ़न की आगही
और वक़ार ओ वज़्न पैदा हो गया किरदार में