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प्यास | शाही शायरी
pyas

नज़्म

प्यास

दीप्ति मिश्रा

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सच है प्यासी हूँ मैं
बेहद प्यासी

लेकिन तुम से किस ने कहा
कि तुम मेरी प्यास बुझाओ

कहीं ज़ियादा ख़ाली हो तुम
मुझ से कहीं ज़ियादा रेते

और तुम्हें एहसास तक नहीं
भरना चाहते हो तुम

अपना ख़ाली-पन
मेरी प्यास बुझाने के नाम पर

तअ'ज्जुब है
मुझे मुकम्मल बनाना चाहता है

एक आधा
अधूरा इंसान