दौलत लालच हवस
झूट फ़रेब नफ़रत
ये अब ऐब नहीं
इंसानी फ़ितरत में
घुले-मिले रंग हैं
रौनक़ उन की है लुभाती
देखने वाले को चौंकाती
हया उन पर अब हमें
बहुत कम है आती
सफ़र हयात का मगर
एक ही जगह
पहुँचाएगा सब को
मिट्टी के तन को
बचा के रक्खेगा कब तक
नज़्म
पूँजी
ख़दीजा ख़ान