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पुर्सा | शाही शायरी
pursa

नज़्म

पुर्सा

अली साहिल

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ख़ुदा को लिखे गए ख़त में
मैं ने अपने दुखों की तफ़्सील नहीं लिखी

क्यूँ-कि ख़ुदा
हर शय से बे-नियाज़

दुनिया की बिसात पर नित-नए खेल खेल रहा है
और तन्हाई का दुख झेल रहा है