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प्रोग्रैम | शाही शायरी
programme

नज़्म

प्रोग्रैम

जोश मलीहाबादी

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ऐ शख़्स अगर 'जोश' को तो ढूँढना चाहे
वो पिछले पहर हल्क़ा-ए-इरफ़ाँ में मिलेगा

और सुब्ह को वो नाज़िर-ए-नज़्ज़ारा-ए-क़ुदरत
तरफ़-ए-चमन-ओ-सहन-ए-बयाबाँ में मिलेगा

और दिन को वो सर-गश्ता-ए-इसरार-ओ-मआ'नी
शहर-ए-हुनर-ओ-कू-ए-अदीबाँ में मिलेगा

और शाम को वो मर्द-ए-ख़ुदा रिंद-ए-ख़राबात
रहमत-कदा-ए-बादा-फ़रोशाँ में मिलेगा

और रात को वो ख़ल्वती-ए-काकुल-ओ-रुख़सार
बज़्म-ए-तरब-ओ-कूचा-ए-ख़ूबाँ में मिलेगा

और होगा कोई जब्र तो वो बंदा-ए-मजबूर
मुर्दे की तरह कल्बा-ए-अहज़ाँ में मिलेगा