याद की दीवार है
दीवार पर एक पोस्टर
और पोस्टर में कामनी...
सब्ज़ आँखें
बे-कराँ आँखें तिरी
कल्बा-ए-निस्यान में
और बर्फ़ के तूफ़ान में
धुँदली हुईं, ख़ाली हुईं
ये फ़ना के गर्म बोसों के निशाँ
जल गया मिट्टी का रस
राएगाँ सब राएगाँ
नज़्म
पोस्टर
साक़ी फ़ारुक़ी